Uttarakhand Stories

अपड़ा पहाड़ 

by Bhupendra Singh Kunwar
Nov 01, 2015

Composed by Juno Negi

सुणी ता भौत् छौ कि
बेटा! हम गढ़वली छां।
पर कि सम्झण छौ
जब तक गढ़वली नि सीखी।

सुण्यूं ता यि भी छौ कि
बेटा! हमारा पहाड़ भौत् सुंदर छन्द।
पर कैल् मण छौ
जब तक अपुड़ गौं नि देखी।

बच्ये ता हिंदी मा चा,
जब बटि पैदा हुयां छां।
पर गाली आज भी,
गढ़वली मा हि खांद छां।

पढ़ई लिखई ता जथ्गा
भी करीं हो,
पर ब्वे बाबू का
आज भी लाटा हि छां।

गर्मियूं छुट्टियूं मा घौर जाण,
नाना ला फोन करि बुलाण।
जाणु खुंणि ब्वे बाबू थैं
सुबेर शाम पितौंण।

सुबेर उठि तड़तड़ु घाम
पैलि स्टील ग्लास भोरि चा
तब क्वी और काम
जु भी छा।

लुट्या बराबर बंठा लेकि
जांदु छौ मामि दगड़ पाणि कू
उकाल उंदार् घुंडा टेकि
रड़यूं छौ कई बख्तो कू।

हाथ पकड़ि मेरा नाना, लिजांद छा मिथैं पुंग्ड़ा मा।
खांदु छौ सेब नाश्पती, तौला बैठि डालूं का।

दग्ड़युं दगड़ डांडा जाण, हैंस्दि खेल्दि घौर आण
डब्बा भोरि काफल लाण, लूण तेल रालि खाण।

आज दिल्ली मा बैठि, एक खालीपन सी लगणु चा।
आंखा बूजी बिस्तर मा लेटि,  दिल ता आज भि पहाड़ुं मा चा…

Bhupendra Singh Kunwar

Founder, eUttaranchal.com

One Response


Vinay Says

Bohot hi bhallu pryas ch aap logo ki apri bhasha the bachandk vasta