Uttarakhand Stories

महासू देवता : पर्वतों के रक्षक

by Sudhir Jugran
Jun 08, 2017

उत्तराखंड में लोक देवताओ से सम्बंधित अनेक कथा सुनने को मिलती है पर जौनसार के लोक देवता महासू की कथा बहुत ही रोचक है।

उत्तराखंड की हरी भरी वादियां देवताओं का प्रिय स्थान है। देवभूमि में पौराणिक काल से ही अनेक लोक देवता प्रचलित रहे है। इनमें नागराज, घंडियाल, नरसिंह, भूमियाल, भैरव, भद्राज और महासू आदि देवता विशेष स्थान रखते है और उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में पूजे जाते है। महासू देवता से सम्बंधित कथा के बारे में बहुत ही कम लोग जानते है। महासू देवता न्याय के देवता है, जो उत्तराखड के जौनसार-बावर क्षेत्र से सम्बन्ध रखते है। महासू देवता का मुख्य मंदिर हनोल, चकराता में स्थित है। हनोल शब्द की उत्त्पत्ति यहाँ के एक ब्राह्मण हुणा भट्ट के नाम से ही हुई है। महासू देवता चार देव भ्राता है जिनके नाम इस प्रकार है।

  1. बोठा महासू
  2. पबासिक महासू
  3. बसिक महासू
  4. चालदा महासू

जौनसार क्षेत्र में महाभारत के वीर पांडवों ने तब शरण ली थी जब दुर्योधन के लाक्षागृह का षड़यंत्र रचा था। जिस स्थान से भागकर पांडवो ने अपने प्राणों की रक्षा करी थी वह आज लाखामंडल के नाम से जाना जाता है। जौनसार में पांडवो से सम्बंधित अनेक कथाएं सुनने को मिलती है।

कलयुग के प्रारंभिक दौर में उत्तराखंड में दानवो का आतंक अपने चरम पर था, जिसके कारण पूरा राज्य और प्रजा दुखी थी। सभी दानवो में सबसे भयावह दानव किरमिर था जिसने हुणा भट्ट के सातों पुत्रो को मार डाला था। किरमिर दानव की हुणा भट्ट की पत्नी कृतिका पर बुरी दृष्टि थी, किरमिर से तंग आकर कृतिका ने भगवान शिव से प्रार्थना की, फलस्वरूप भगवान शिव ने किरमिर की दृष्टि छीन ली। हुणा भट्ट और कृतिका किरमिर से अपने प्राण बचा कर निकल गए। अपनी और प्रजा की रक्षा हेतु हुणा भट्ट और उसकी पत्नी कृतिका ने देवी हठकेश्वरी से प्रार्थना करी। देवी ने दोनों को कश्मीर के पर्वतों पर जाकर भगवान शिव की प्रार्थना करने को कहा। वे दोनों देवी के आदेश अनुसार कश्मीर के पर्वतों पर जाकर, भगवान शिव की स्तुति में पुरे मन से जुट गए।

Lakhamandal Temple

भगवान शिव का पौराणिक लाखामंडल मंदिर.

भगवान शिव उनके इस आह्वाहन पर प्रकट हुए और उन्हें वरदान दिया की जल्दी ही उनको और समस्त क्षेत्र वासियों को दानवो के अत्याचार से मुक्ति मिलेगी। इसके लिए उन्होंने हुणा भट्ट को निर्देशित किया की वो अपनी भूमि वापस लौट कर शक्ति की स्तुति और अनुष्ठान करें। हुणा भट्ट अपनी पत्नी कृतिका के साथ वापस लौट आये और शक्ति का अनुष्ठान करने लगे। हुणा भट्ट की प्रार्थना और अनुष्ठान से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें दर्शन दिए। देवी ने हुणा भट्ट को आदेश दिया उसे हर रविवार अपने खेत का एक भाग शुद्ध चाँदी के हल और सोने के जूतों के साथ जोतना होगा, इस कार्य में प्रयुक्त होने वाले बैल ऐसे होने चाहिए जिन्होंने पहले कभी खेत न जोता हो। ऐसा करने से सातवें हफ्ते में महासू भाई अपने मंत्रियो और सेना के साथ प्रकट होंगे और समस्त क्षेत्र को दानवो से मुक्त कर देंगे।

हुणा भट्ट ने देवी शक्ति के कहे अनुसार खेत जोतना आरम्भ किया। छंटे हफ्ते के रविवार को जब हुणा भट्ट खेत जोत रहे थे तो हल के पहले चक्कर पर बोठा महासू, दूसरे पर पबासिक महासू, तीसरे पर बसिक महासू और चौथे पर चालदा महासू प्रकट हुए। चारों देव भ्राताओं को सामूहिक रूप से महासू (चार महासू) कहा जाता है। हल के पांचवे चक्कर से देवलाड़ी देवी, मंत्रियो और दैवीय सेना के साथ भूमि से प्रकट हुई। देवी शक्ति ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ महासू देव भ्राताओं और उनकी सेना ने पुरे क्षेत्र से दानव समाप्त कर दिए। कहते है किरमिर को चलदा महासू युद्ध के समय खांडा पर्वत तक ले गए थे जहाँ की चट्टानों पर आज भी उनकी तलवारो के निशान देखे जा सकते है।

Mahasu devta lakhwar

महासू देवता मंदिर – लखवार.

महासू देव भ्राता जब हनोल में नहीं थे तो केशी नामक दानव ने हनोल पर अपना अधिकार कर लिया। चालदा महासू और उनके वीरों ने केशी को समाप्त कर पुनः हनोल पर अपना अधिकार प्राप्त किया। चलदा महासू ने पुरे क्षेत्र को चार राज्यो में विभक्त कर दिया ताकि चारो भ्राता मिलकर अपने-अपने राज्य पर साशन कर सकें और विपत्तियों से अपने राज्य की रक्षा कर सकें। देवी शक्ति के कहे अनुसार चारो महासू देवताओ को सातवें हफ्ते के रविवार पर प्रकट होना था पर सभी भ्राता छटें हफ्ते के रविवार को भूमि से प्रकट हुए थे जिसके कारणवश हुणा भट्ट ब्राह्मण के हल से बोठा महासू के  घुटने पर घाव हो गया और वे चलने में असमर्थ हो गए।

महासू देवता डोली के बाहर निकलने का भव्य दृश्य, जौनसार |

बसिक महासू की दृष्टि पर वहां उगने वाली घास की तेज़ धार लग गयी जिस से उनकी दृष्टि आहत हुई। पबासिक महासू के कानो को भी क्षति पहुंची। केवल देवलाड़ी देवी और चालदा महासू ही इस दोष से बच पाये। चलने में असमर्थ होने के कारण बोठा महासू ने हनोल में बसना पसंद किया। पबासिक महासू अपने अधिकार क्षेत्र हनोल, लाखामंडल, ओठाणा और उत्तरकाशी में भ्रमण करते रहे। हर महासू देवता के पास अपने परिचर होते है जिन्हें वीर कहा जाता है कैलू, कैलाथ, कपला और सेड़कुड़िया ये सभी महासू से सम्बंधित वीरों या परिचर के नाम है। महासू देवताओ के परिचर या वीरो के साथ महिला सहायक भी होती है जिन्हें बलयानि कहा जाता है।

उत्तराखंड में लोक देवताओ से सम्बंधित अनेक कथा सुनने को मिलती है पर जौनसार के लोक देवता महासू की कथा बहुत ही रोचक है। उम्मीद है आप सभी जौनसार के महासू देवता की कथा पढ़ कर यहाँ के पौराणिक महत्व को समझ गए होंगे। आशा है अब आप जब भी उत्तराखंड भ्रमण के लिए आएंगे तो जौनसार क्षेत्र में स्थित हनोल मंदिर में महासू देवता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलेंगे।

चालदा महासू देव डोली |

Sudhir Jugran


7 Responses


Ajay Singh Says

Jai mahasu devta i belive him

abhishek nayal Says

Great bro

Deep sharma Says

Bahut achi jankari di h shrimaan … Dhanyabaad

Rock Max Says

बहुत अच्छा और रोजचक सत्य की जानकारी आप के द्वारा

Manmohan Singh Chauhan Says

अनेको तथ्यों को गलत बताया गया है। महासू भाइयों के उत्पन्न होने से लेकर दानव वध राज्य बंटवारा एवं उनके क्रमश भी सही नहीं । लोगों को भ्रमित ना करे। सही जानकारी को दिखाने का प्रयास करे।

Sudhir Jugran Says

बहुत बहुत धन्यवाद श्री एस एस बिष्ट जी, आशा है ये जानकारी आप सभी लोगो तक पहुचाएंगे। जय महासू देवो की

S S BISHT Says

Nice information. Jai Mahasu Devon ki.