पहाड़ों की कटोरी मैं बसा मेरा गाँव,
मेरे घर के सामने उगता सुबह का सूरज,
रात को छत से दिखते असंख्य तारे, इतने पास कि जरा सा हाथ बढाओ तो पकड़ मेंआ जायें
खेतों मैं चाय की केतली लेकर जाना।
सहेलियों के साथ ठिठोली करते हुए नौले से पानी की मटकी लाना,
आडू, ककड़ी, नींबू नारंगी, दाड़िम,अखरोट, हिसालू, किलमोड़ा काफल।
ढूढ़ना, तोडना और बांटकर खाना, होली के ढोल दीवाली के ऐपण,
छोटी छोटी मुट्ठियों से लक्ष्मी के पैर बनाना।
चिड़िया के गीतों से उठना,
झींगुर की लोरी से सोना,
कंपकपाती सर्दी मैं,
रजाई के अंदर दुबक जाना।।
ईजा बाबू आमा बुबू गाँव परिवार,
चाचा ताऊ दीदी बैनी, रिश्तों से भरा हुआ संसार।
क्या क्या याद करूँ,
जिंदगी तो वहीँ रह गयी,
मैंने कुछ खोया नहीं,
पर मैं खुद ही खो गयी।
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मुझे याद आता है पहाड़ की चोटी, पहाड़ी खाना (भट्ट की चेडकानी, मडुवा की रोटी, राई का साग, चूखसान कर खाना), पहाड़ी रिवाज से शादी, छलिया डान्स, घास व लकड़ी के लिए जंगल जाना, चयूडा से माॅ का सभी लोगों के सर पूजना जी रये जाग रये, दूब की जैसी जड हैजो, पाती की जैसी पलूरी आ जो, बाग जस बलिया , सियार जस चतुर है जाया, हिमालय में हययू छन तक, गाड में बललू छन तक जी रया जाग रया, दीन बार भेटनै रया, ये बहुत याद आता है। पहाड़ के सीधे सादे बिना छल कपट के लोग, जो बिना कहे ही मदद के लिये तैयार रहते सब याद आता है, मजबूरी होती है, नही तो अपना घर गांव छोड़कर परदेश में रहना किसे पसंद है? मुझे तो नहीं।
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उत्तराखंड का जंगलु मा पैदल घूमण, चीड़ की छैल मा बैठण, डालुं कि सरसराट, गाड़ गदरों की छमछाट, गंगा जी कु कुब्ल्याट, पथुलु की चाहचहाट, गोरुँ भेसुं की रम्याट, ढोल दमो की धकाधूम, काँसे की थकुलि कु घुंगघ्याट, कन आंनद ओन्दु छौ।
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I am a trekker, Uttaranchal calls me. I am trekking in this area for the past 12 years. I love the snow peaked mountain ranges, the beautiful rivers, every apple trees full of red and green apples. Fruits like appricots, apples, walnuts everything very sweet and fresh. The lovely people and the beautiful culture. The children walking difficult paths to go to school and singing patriotic songs. The clothes that they wear and always covered from head to toe to face the cold weathers. I have witnessed all the seasons and when there is winter and the fall colours on the trees in the valleys look so colourful. The animals like the thars, snow leopards are visible at the cliffs and their grace is worth admiring. The homestays and the food preparations and homely atmosphere and comfort zone at the maximum. Beauty at its best.
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मुझे मंड़वे की रोटी, सरसों का साग। बुरांश का जूस, हिसोल, किनगोड़े की बहुत याद आती है। फूल संक्रान्ति पर घर-घर जाकर गीत गाना व आंगन में फूल फेंकना, व गुड़, बताशे खाना बहुत याद आता है। स्कूल में टीचर को गुरूजी व बहन जी कहना, इंक पेन व रिंगाल की कलम से लिखना। बहुत अच्छे थे वो दिन। शादी की सादगी के क्या कहने। अपनी थाली ले जाना। पठाल वाले घर, कितना अच्छा लगता था उनमें। मेरा उत्तराखंड महान्।
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सुबह का दृश्य जो बेहद याद आता है बुबू पटांगण में बैठे हुए चीलम हाथ में लिए आज उन्ही का श्राद् भी है।
और ईजा सर में फुंगव रख कर नोव को जाती हुई। पानी लेने ऊपर धार में बच्चे स्कूल को जाते हुए और मेरी पहाडी भूली केतली से सबको स्टील के ग्लास में गुड़ के साथ चाय देती हुई।
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शेहरों की चका चोंध में वो बात कहाँ, जो गाँव की मिटटी की सुगंध में है। उत्तराखंड में मुझे सबसे ज्यादा याद अपने गाँव की आती है। जहाँ चूल्हे से निकला लकड़ी का धुवां मेरी आँखों पर पड़ता और मेरी आँखों से आंसू निकल पड़ते, और कोदे (मंडुवा) की रोटी में पिसा हुआ नमक की तो बात ही कुछ और है।
सिर्फ, इंसान की इंसानियत, माहौल की रूमानियत, वो गड़गड़ाती बिजलियाँ, वो प्यार वाली बोलियाँ, वो खूबसूरत वादियां, वो फूल पत्ते झाड़ियाँ, वो मासूम बचपना, वो खिलखिलाती जवानियाँ, वो हिम ढकी पहाड़ियां, वो चीखती सी ज़िन्दगी को कह रही हैं, आ…..
कुछ देख कर,कुछ ध्यान कर इस सम्पदा का सम्मान कर।
ये दुर्गति,जो है घटी,
तेरी वजह से है सभी,
है वक़्त अब भी संभल जा,
मेरे पास आ,न दूर जा….
न दूर जा।।
बचपन मैं मेरे दादाजी गावं से बडे-बडे डालडा के डब्बो में देसी घी लाते थे, घी खत्म हो जाने पर भी मैं उन्हे फेंकने नही देती थी क्यूकी कई दिनो तक मैं उस डब्बे को सुंगती रेहती थी। मुझे आज भी अपने दादाजी और ऊनके लाये घी के डब्बे बहुत याद आते हैंl
सुबह सुबहअपने मालाकोट की ऑगन की दीवार पर बैठकर दूर सामने घरों की छतों से उठते हुए धुये को देखते रहना। कितनी शांत सुबह होती थी वो। उस सुबह मे पीतल के गिलास से आती वो चाय की अनोखी खुशबू आज के बारिस्ता में भी नहीं।
मुझे सबसे ज्यादा याद आती है गाँव में होने वाले शादी ब्याह जहाँ गाँव के लोग मिलकर सारे काम करते हैं और खाना भी एक साथ बैठकर खाते हैं। याद आता है जब हम लोग नींबु सानते थे तो सब लोग आ जाते थे और जब हम घास काटने या लकङी लेने जाते थे, तो कच्चे आम और खज (चावल, चीनी, तिल का मिश्रण) ले जाते थे। बहुत याद आता है।
Jab Uttarakhand se bahar rehti thi tab sab se zyada apni भाषा ko miss karti thi bahar na bus stop pe पहाड़ी गीत sunne ko milte the na market me भैजी bolke koi papa ko bulata tha पर हम जहाँ जाते हैं अपनी रंगत बिखेर देते हैं। वहाँ भी लोगों को पहाड़ी गानों पे थिरकना सिखा ही दिया।
उत्तराखंड की मुझे सबसे ज्यादा खाने वाली चीज़ काफलों की याद आती है। जिसे पिसा नमक और सरसों के कच्चे तेल में मिक्स करके खाती थी मैं वाह क्या स्वाद था उसका जो अब भी भुला नहीं जाता।
सुबह सुबह उठने क साथ ही खेतों में बैलों की घंटी, हल लगाते किसानों की आवाज़ पक्षियों की आवाजें जो शहरों में सुन ने को नहीं मिलती। सरसों के तेल में भिगो कर काफल खाना और सबसे ज्यादा वो अपनापन जो शहरों से नदारद है। आज भी गाँव क घरों मैं खोली क गणेश बने होते हैं। वो भाहूत याद आते हैं।
बांज, बुराँस और चीड़ की छाँव याद आती है,
गुजरा जहाँ बचपन, उस गांव की याद आती है।
वो वादिया वो पहाड़ वो फूलों की खुशबू वो सरसों का साग वो निभू की कटास वो झरने का पानी वो सूरज का खिलना वो चिड़िया का चखना वो चूले की रोटी वो प्याज का टुकड़ा वो खीरे का संवाद वो दादी की लोरी वो परियों और भूतों की कहानी और इन सब में हँसता खिलता मेरा बच्चपन।
घर का आँगन जहाँ गुजरा मेरा बचपन वो जाड़ों की धूप खाने को झोली और चावल, अम्म्मा का दुलार बुबु के नेक विचार, ईजा की चिंता पिता की फटकार, छोड़ आया मैं अपना पहाड़, अब बस बहुत याद आता है अपना पहाड।
Apni boli or wo फूल फूल मई के time हर घर में जा के चावल दाल तेल मशाला मांगना और गाउँ से बहार जा कर पुजे(खुद खाना बनाना मिल कर सारे लोग) और लुड़पिन बाखरी वाला और पोषम पा वाला खेल खेलना और कौआ बन के सबसे पहले प्रसाद चखना miss all thing।
“दाज्यू आओ बैठो चाय पी जाओ”। ये बात उत्तराखंड की मुझे सबसे ज्यादा अच्ची लगती है।हर जगह मे इसे बहुत मिस करता हु।
मेरे घर के बहार लगातार चलने वाली ठंडी हवा से चीड़ के पत्तों की सरसराहट और लगातार आने वाली चिड़ियों की चहचहाट आज भी याद आती है, यही कारण है कि लगभग हर महीने मैं उस बंद पड़े मकान को देख भी लेता हूँ और ठंडी और पोषक हवा का सेवन भी कर लेता हूँ।
शाम का वह नजारा जब हर घर मै देवी देवताओँ की पूजा होती है और हर घर मै शंक की आवाज आज भी मेरे कानों मै गूँजती है यही हमारी देवभूमि है जय हो।
कानस के ऊपर लटके मक्के के गठरियां और लासण के थैले और वो लाल मिर्च जो हमारी पहाड़ी पछाण छु ये मेके भौते याद उण छू।
अरसे की बहुत याद आती है। जब एक नौनी अपने मायके जाती है और वहां से जब वापस अपने ससुराल आती है तुओ kalyo लाती है। वो बहुत सवादिस्ट होता है और उस्सी की याद सबसे जादा आती है क्योंकि वो बहुत काम बनता है और हर किसी की बस की बात नहीं उससे बनाना।
पहाड़ी लींगरे ,खथुरे , जंगली मशरूम की सब्जी। ताज़ी हरी चटनी, घी, क्वादइ की रोटी के साथ।पहाड़ी ताजा ठंडा पानी और हवा। वहा की हरियाली। सीधे पहाड़ी लोग। अपनापन। मंदिरो में पूजा और देवता क नाचना। रात को बाघ कअ गुर्राना। पहाड़ो में आवाजो का गूंजना। क्या क्या लिखू?
Sabse jaada accha lagta hai waha ke log jo bhaut sidhe sadhe hote hai unki boli misri jaisi unka rehen sehan waha ke ghar hut type ke waha ki baarish jungle se bheta paani wo chid ke ped. Waha ki chai jab subah hote hi uski khusbu aati hai aur pta chalta hai ki hum Uttarakhand mai aa gaye wo kache aam khana namak pish ke wo gaad main jaane boo khelna aur sabse acha waha ke log jo apne bacho ya apne nati poto ka intazaar karte nazar aate hain ke aaj mere beta beti aayenge mere nati pote aayenge unke intazaar main umar guzarna man ko moh leta hai.
Mera gaon mera ghar vahan ke log unka seedhapan Almora ki bal mithai Mal Road Nainital, Bheemtal ki khubsurat jheel, Chitai Ghorakhal ke Golu gaon ke Ganganath Mandir, Bageshwar ka Uttrayani ka mela, Almora Nanda Devi ka Mela, Pithoragarh ka Shor Mahotsav. Chandak ka morning walk, Kapileshwar Jana Shivratri mein Thalkedar jana, Gangolihat ka Kalika Patal Bhuvneshwar, Chokori ke chai ke baag m ghumna, Kotgari mandir jana savan mein Jageshwar jana. Srinagar ki Alaknanda ke pas sham ko baithna, Dhari Devi Tungnath Chopta ki pahadiya, Pauri ki Kandoliya jana, ye to kafi kam hai aisa kuch nhi jo bhula ja sake. Mera ghar apne log unka seedhpan, achi hawa, acha pani, acha khana ghar ka doodh, dahi-ghee, aaram ki lifestyle jisma time hai dusron ke liye. Gaun ki holi, gana aisa kuch nhi jo yad na aaye ya jo bhula ja sake bus samay ki kami h. Varna yad krne ko to kafi kuch hai.
पहाड़ के लोगों में जो अपनापन और दूसरों के लिए प्यार और सम्मान है वो कहीं और देखने को नहीं मिलता। किसी भी अनजान गांव के रस्ते से भी गुजरेंगे तो बड़े बुजुर्ग हाल चाल पूछते हुए मिल जायेंगे जैसे बरसों से जान पहिचान हो।
वो मसूरी मैं बाइक से जाना। वो Dhanolti मैं बर्फ की ठंड मैं चाय पीना वो Tehri जाते समय Chamba मैं विश्राम करना। Tehri पहुँच के झील को निहारना, रुद्रप्रयाग जाते समय Sringar मैं रिश्तेदारों से मिलना और फिर रुद्रप्रयाग पहुँच के चोपता घूमने का प्लान बनाना। चोपता पहुँच के चंदर्शीला के हसीन वादियों को निहारना। वो घर से जमा किये हुए रुपए से ऋषिकेश घूमने जाना। वो गांव पहुँच के नानी के हाथ की चाय पीना। याद आता है बहुत! frown emoticon शब्दों मैं बयाँ कर पाना मुम्किन नही|:(
Touching. Aap sabhi ke vichaar bahut achchhe lage. Garv hai yah jaankar ki aapke dilon main pahar (hamari jadein) jeevit hain. Pl keep it up and think as to what is the best we can do for the development of our roots and culture.