Uttarakhand Stories

Which is your Favourite Song in Garhwali/ Kumaoni or Jaunsari? and Why?

by Manoj Bhandari
Oct 12, 2015

Result of Facebook Daily Contest #10

And the winners are

1.

Naveen Naithani Naveen Naithani

मेरा डांडी काँठी का मुळक जैल्यु बसंत ऋतू मा जैयि-बसंत ऋतू मा जैयि। हेरा बण मा बुंरासी का फूल जब बणाग लगाना होला,बिठा पंखों ते फ्योंली का फूल पिन्ला रंग मा रंग्याणा होला लयां पयाँ ग्वीराल फूलूँ ना होळी धरती सजीं देखि ऐयि बसंत ऋतू मा जैयि।

यह गढ़वाली गीत मुझे बहुत अधिक अच्छा लगता है। क्योंकि इस गीत में कहा गया हे की उत्तराँचल की सुंदरता को अच्छे से देखना हो तो बसंत ऋतू का समय अच्छा है। और उत्तराँचल की सुंदरता का खूबसूरत व्याख्यान किया गया है। इस गीत के माध्यम से लोगों को यहाँ आने और उत्तराँचल को देखने को कहा गया है।

2. 

Avdhesh Bijlwan

Avdhesh Bijlwan

मुझे नरेंद्र सिंह नेगी जी का गाया गढ़वाली गीत “हे मेरी आंख्युं का रतन बाला से जा दी” बहुत ज्यादा पसंद है। शायद ये गढ़वाली भाषा की इकलौती लोहरी है। इसमें एक माँ अपने बच्चे को सुलाने के लिए उसको मना रही है कि मैं तुझे दूध भात ( गढ़वाल के बच्चों को विशेष तौर पर मिठाई की जगह बक्शीश के रूप में दिया जाता था) दूंगी। “मेरे लाल मेरी आँखों के प्यारे सो जा” उसको मेरी ‘जिकुड़ी कुखुड़ी (जिगर का टुकड़ा) जैसे विशेष ममतामयी शब्दों से मनाने की कोशिश में लगी है और उसको समझा रही है कि मेरे लाल तेरी माँ को बहुत काम हैं तू सो जा अपने बच्चे को सुलाने के लिए एक माँ को क्या क्या जतन नहीं करने पड़ते काम की चिंता के साथ साथ बच्चे की चिंता को किस तरह से एक माँ दूर करती है उसको साफ़ तौर पर समझा जा सकता है क़ि इन सब चिंताओं से निपटने की कला का वरदान केवल एक नारी एक माँ को ही प्राप्त है। यह गाना पहाड़ की माँ और नारी का बड़ा मार्मिक चित्रण दिखाता है की किस तरह पहाड़ की नारी विषम परिस्थितियों से जूझती हुई अपने कर्तव्यों और ममता का निर्वहन किस तरह से करती है। दुःख को भूलकर सुख को ढूँढना कोई पहाड़ की नारी से सीखे। “बिसरी जांदू वीं खैरी विपदा हेरी की तेरी मुखड़ी बाला से जा दी”

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Besides the above winners, we also found the following comments worth appreciation:

Nitesh Singh Deolia

नेगी जी का ये गाना बड़ा ही मार्मिक और भावपूर्ण है, इसमें नेगी जी ने पहाडो की नारी की जीवन गाथा का वर्णन किया है, की हमारे पहाडों की नारी किस तरह से प्रीत की कोमल डोर की तरह हैं और पर्वत की तरह कठोर भी है।

प्रीत सी कुंगली डोर सी छिन ये

पर्वत जन कठोर भी छिन ये
हमारा पहाडू की नारी.. बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी-2
बिन्सिरी बीटी धान्यु मा लगीन, स्येनी खानी सब हरचिन-२
करम ही धरम काम ही पूजा, युन्कई ही पसिन्यांन हरिं भरिन
पुंगड़ी पटली हमारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी-२
बरखा बतोन्युन बन मा रुझी छन, पुंगडा मा घामन गाती सुखीं छन-२
सौ सृंगार क्या होन्दु नि जाणी
फिफ्ना फत्याँ छिन गालोडी तिड़ी छिन
काम का बोझ की मारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी-२
खैरी का आंसूंन आंखी भोरीं चा,मन की स्याणी गाणी मोरीं चा -2
सरेल घर मा टक परदेश, सांस चनि छिन आस लगीं चा
यूँ की महिमा न्यारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी-२
दुःख बीमारी मा भी काम नि टाली,घर बाण रुसडू याखुली समाली-२
स्येंद नि पै कभी बिजदा नि देखि, रत्ब्याणु सूरज यूनी बिजाली
युन्से बिधाता भी हारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी-२
प्रीत सी कुंगली डोर सी छिन ये
पर्वत जन कठोर भी छिन ये
हमारा पहाडू की नारी.. बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी-2

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विजय रावत

वैसे तो मुझे सब गढ़वाली गीत अच्छे लगते है पर दिल के सबसे करीब मीना जी का ” घुघुती घुरण लगी मेरा मैत की ” है । क्योंकि शायद एक बेटी का सबसे दुःखद पल होता है अपने माँ बाप या अपने ही घर से विदा लेना। लेकिन सबसे सुखद पल भी शायद तब होता जब वो मायके आने वाली होती है। उस स्थिति को ये गाना खूबसूरती से बयां करता है।

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Shyam Joshi

काफी दिनों तक घर में छूटी बिताने के बाद पति जाने लगता है अपनी नोकरी पर पत्नी हाथ में पिठ्या की थाली लेकर तिलक करती है उधर फ़ौजी की अंतरात्मा कहती।

पहाड़ा जन्म मैरो के खुआ में रुके जानी कब घर उले सुवा तेरी नराई फेडूल बुडी ईज आँखो में फुट रे छ सिरा बाबा
की हिकोई आज पड़ रै चीरा यूँ नान तीना मुख चानी मेरा दाद भुला उदासी रई हे मेरा कुला का इस्ट देवा धर दिया वती मेरा घर बणा कर दिया छाया सबके।

घुघूती ना बासा आमा की डाई मा घुघूती ना बासा आम की डाई मा,
तेरी घूर घूर सुणी में लागु उदासा स्वामी मेरा परदेशा बर्फ़ीला लदागा।
घुघुती ना बासा घुघूती ना बासा घुघुती ना बासा घुघूती ना बासा, 
ऋतू ऐ गे गर्मी की मैके याद इ गे आपणा पति की घुघूती ना बासा।

यह गीत मुझे हमेशा अपने पहाड़ की याद दिलाता है मुझे लगता है जिस तरह यह गीत के बोल है हम सब परदेशियों के लिए बने है जब हम पहाड़ से परदेश को आ रहे होते है यह गीत बहुत याद आता है और में इस गीत को लगभग रोज ही ऑफिस जाते हुए सुनता हूँ। इन गीतों को सुनकर पहाड़ो की याद फिर से ताजा हो जाती है और साथ में मुझे कुछ ना कुछ लिखने को मिल जाता है ।और साथ में ये भी दर्शाता है की एक पहाड़ी की ज़िन्दगी सायद प्रदेश में ही सीमित है।

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Bharat Bhakuni

डालियों न काटा दिदो डाल्युं न काटा, फुल खिल्ला न हरियाली ही राली दुनिया यूँ पहाड़युं पर ठट्ठा लागली। गीत संगीत नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा। इस गीत मे पहाड़ की संस्कीरति वन सम्पदा के संरक्षण की बात की है। वन नही रहेंगे तो मिर्दा अपरदन होगा घर, खेत, प्राकृतिक सौंदर्य नही बचेंगें। इसलिये ददा भुल्ली इनका संरक्षण करो नही तो लोग पहाड़ का उपहास उड़ायेंगे।

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Rakesh Joshi

Door badi boor barfeelo dana leh ladakhh lade lagi mero dajyu bachi raya. Ek thali m pan supari ek thali m kheer dajyu dusman ladene aalo mari diya goli dajyu, mujhe ye song is liye sabse jyada achha lagta h kyuki yah song un logo ko dedicated h jo apne ghar pariwar se door boarder pe hamari raksha k liye tatpar hai. Salute to them and their families sacrifice.

Manoj Bhandari


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