Uttarakhand Stories

Which one of them should be the capital of Uttarakhand? Gairsain or Dehradun?

by Manoj Bhandari
Oct 31, 2015

Result of Facebook Daily Contest #30

And the winner is:Winner of Uttarakhand online fest

Harish Bangari Manila

उत्तराखंड को पहाड़ी राज्य के नाम से भी जाना जाता है इसलिये इसकी राजधानी भी संभवतः पहाड़ी शहर में होनी चाहिए इसके लिए कुमाऊ और गढ़वाल दोनों क्षेत्रो को जोड़ने वाला शहर गैरसैण सही चुनाव होगा
उत्तराखंड राज्य के अलग होने के 15 साल बाद भी राजधानी स्थायी रूप से
नही मिल पायी है ।

गैरसैण को राजधानी बनाने से पहाड़ो के विकास को नयी गति मिलेगी इसलिए आज ज्यादा पहाड़ी क्षेत्र गैरसैण को स्थायी राजधानी मांग रहे है इसके लिए समय -समय किये गए आंदोलन रैलियां इसका उदाहरण है।
गैरसैण जो आज रेलवे और हवाई अड्डा नहीं होने के कारण राजधानी नहीं बन पाया लेकिन अब तत्कालीन सरकार ने वह 6 महीने के लिए अस्थायी राजधानी के तर्ज पै घोषणा की है और इसका पूरा लाभ पहाड़ी क्षेत्र को मिलेगा ।

आज पलायन को देखे तो उत्तराखंड के पहाड़ी जिले खली होने की कगार पे खड़े है क्योंकि वहा मूलभूत सुभिदायें नहीं है जैसे सड़क, अस्पताल, शिक्षा, पानी,
जिनके बिना जीवनयापन कठिन है गैरसैण राजधानी बनने से सरकार का ध्यान जरूर पहाड़ी क्षेत्र के इन दर्दो पै जरूर जायेगा और इनका समाधान हेतु योजनाएं भी पहाड़ो में लायी जाएँगी।
सुन्दर पहाड़ी क छोटी बसा गैरसैण एक बहुत सुन्दर पर्यटन स्थल भी है और इसको राजधानी बनाये जाने से पहाड़ी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और पहाड़ी क्षेत्र की जनता को रोजगार मिलेगा जिससे पलायन को रोकने में मदद मिलेगी और जो राज्य के विकास को नयी दिशा प्रदान करेगा ।

अतः यह कहना गलत नहीं है की पहाड़ी राज्य उत्तराखंड को भी गैरसैण स्थायी राजधानी बनाये जाने का इन्तेजार है।

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Besides the above winners, we also found the following comments worth appreciation:

Himanshu Bisht

गैरसैण (चमोली), देहरादून के अपेक्षा उत्तराखंड के बीचों बीच है इसलिए सभी लोगों के लिए ये फायदेमंद है| अगर गैरसैण को राजधानी बनाया जाता है तो निम्नलिखित समस्याएं सुलझ सकती है।

(1)- समय और धन की बचत तथा लोग सरकार की गतिबिधिओं को बारीकी से समझ सकते है।


(2)- पहाड़ों में सड़क, रेल या अन्य यात्राओं को बारीकी से समझा जा सकता है और और पहाड़ों में बिकास को गति मिल सकती है।

(3)- गैरसैण राजधानी बनने से पहाड़ों का सौंदर्यकरण में चार चाँद लग जायंगे।

(4)- पर्यटक स्थलों को बारीकी से समझा जायेगा था पर्यटकों को लुभाने के लिए सन्दर्यकरण तथा साफ़ -सफाई विशेष पर बल मिल सकता है।

(5)- अगर गैरसैण में राजधानी होती है तो पलायन रूपी महा दानव से भी छुटकारा पाया जा सकता है । और हमारी संस्कृति और हमारे पहनावे का बिस्तार हो सकता है।

(6)- गैरसैण राजधानी से सरकारी स्कूलों की हालत को नजदीकी से सुधारा जा सकता है और
सरकारी स्कूलों को अच्छे स्कूल के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है|

(7)- गैरसैण राजधानी होने से उत्तराखंड के सभी तेरह जिलों पर आसानी से ध्यान दिया जा सकता है|

(8)- इसके आलावा बहुत सारे समस्याओं को समझा जा सकता है जो उत्तराखंड में रह रहे लोगों से बात करने पर पता चल जायेगा।

Pranaw Semalty

अलग राज्य की जो मांग जो इतने लम्बे समय से की जा रही थी उसका मुख्य कारण था पहाड़ की उपेक्षा, पहाड़ी क्षेत्र का विकास न होना । यहाँ के लोगों को उम्मीद थी कि अलग प्रदेश बनने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शिक्षा, स्वास्थय, बिजली, पानी की कमी के साथ जो बेरोजगारी और पलायन का दंश झेलने को मजबूर है , उससे मुक्ति मिलेगी ।अथक प्रयास और बलिदान के बाद अलग राज्य तो बना लेकिन राजधानी देहरादून में बनने के कारण स्थिति पहले जैसी हो रह गयी।जन प्रतिनिधी , अधिकारी , कम्रचारी कोई भी पहाड़ में जाने को तैयार नहीं हैं।अलग राज्य बनने के बाद पलायन और अधिक होने लगा है। कोई दिल्ली , मुम्बई तो कोई देहरादून की तरफ जा रहा है। जब पहाड़ में मूलभूत सुविधायें, रोजगार मिलेगा ही नहीं तो कोई वहाँ रहे भी तो कैसे ? यदि अलग राज्य के निमार्ण को साथर्क करना है तो राजधानी गैरसैण मे ही होनी चाहिये जिससे समूचे प्रदेश का संतुलित विकास हो सके ।

Harish Raturi

उत्तराखंड राज्य की स्थापना इस उद्देश के साथ हुई थी कि विकास की दौड़ में उत्तराखंड कहीं पीछे न छूट जाये। उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थियों की वजह से ही एक अलग राज्य की मांग उठी और हज़ारों लोगों के बलिदानो के फलस्वरूप हमे उत्तराखंड राज्य प्राप्त हुआ। अगर देहरादून ही राज्य की राजधानी बनानी थी तोह लखनऊ में क्या बुराई थी। जिस प्रकार प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, अध्यापक व अन्य नौकरशाही पहाड़ों पर जाने से कतराते हैं उसी प्रकार हमारे नेता भी नहीं जाना चाहते। राज्य के विकास के लिए गैरसैण राजधानी होना बहुत जरुरी है क्यूंकि मैदानी छेत्र में रहकर पहाड़ के विकास की कल्पना निराधार है।

Ashutosh Ankit Rawat

गैरसैण ही होनी चाहिऐ क्योंकि गैरसैण उत्तराखण्ड के बिलकुल बीचों बीच बसा एक सुंदर नगर है। और राजधानी बनने के बाद यह नगर और भी सुंदर बन जायेगा और गैरसैण के साथ साथ उसके सामने वाले छोटे बड़े नगरों का भी अधिक विकास होगा। उत्तराखण्ड एक पर्वतीय राज्य है तो इसकी राजधानी भी पर्वतीय होनी चाहिए। गैरसैण के उत्तराखण्ड के बिलकुल बीच में जिसके कारण उत्तराखण्ड का चारों दिशाओं में विकास बिलकुल ठिक ढ़ंग से होगा यहाँ सड़क राजमार्ग व्यवस्था अच्छि हो जायेगी जिससे विकास की रफ्तार तेज होगी और गैरसैण प्राकृतिक सुंदरता की दृष्टि से भी देहरादून से बहुत अधिक सुंदर है यहाँ से सम्पूर्ण उत्तराखण्ड हिमालय के दर्शन किये जा सकते हैं और गैरसैण के राजधानी बनने के कारण उत्तराखण्ड के अन्य पर्वतीय नगरों का विकास तेजी से होगा। उत्तराखण्ड का पर्वतीय क्षेत्रों में भी शिक्षा विकास और भी अधिक होगा। और हमारे उत्तराखण्ड के राज्य आन्दोलनकारीयों ने भी गैरसैण को राजधानी बनाने का मुद्दा उठाया था क्योंकी उन्हे पता था अगर गैरसैण उत्तराखण्ड की राजधानी बनेगी तो उत्तराखण्ड का चहुमुखी विकास होगा जो उत्तराखण्ड के भविष्य के लिए बहुत अच्छा होगा।

रीना पुष्कर बिष्ट

dehradun ko hi rajdhani hona chahye.. reasons r 1- yha sara infrastructure ban chuka h, yha k connectivity bhaut achi h, itna paisa yha pr lg chuka hai, so khi or itna paisa invest krna smjhdari nhi hogi btr hoga k ache vikas karyo me lgaya jae.2nd thing uttarakhand already debt me h agr capital kho or shift krte h toh hm log or b jada debt me aa jaege.so dat vl b btr k rajdhani ko dun me hi rkha jae or baki uttarakhand ko develop krne me jada dhyan dia jae.

Pawan Negi

“Pahar ki rajdhani pahar men ho” ye mudda uttrakhand rajy ke nirman se hi chala a rha he. Deharadun pahle se hi 1 well doveloped city he, ynha o sab available he Jo 1modran city ya sate men hona chahiye. Or rajdhani ke liye uchit v he but ager rajdhani GERSEN bani to us se kyi fayde honge, 1 nyi jagah ko loag achhi trah jaan paynge, local areya ka vikash,nye rojagar ke awser, local business, and also it central place of state.

Gaurav Bhushan Hatwal

मेरे मन्तव्य से उत्तराखंड की राजधानी का निर्धारण जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र की तर्ज पर होना चाहिए। जिस प्रकार महाराष्ट्र की दो राजधानियां मुम्बई और नागपुर है और जम्मू-कश्मीर की भी दो राजधानियाँ श्रीनगर(ग्रीष्म कालीन) और जम्मू(शीतकालीन) है। उसी प्रकार उत्तराखंड की राजधानी भी देहरादून(शीतकालीन) और गैरसैण (ग्रीष्मकालीन) राजधानियां होनी चाहिए। इससे निम्न फायदें होंगे—

1. पहाड़ और मैदानों में राजधानी बनाने का यह झगड़ा समाप्त हो जाएगा।और इस मसले पर हो रही बेकार की राजनीति भी खत्म हो जायेगी जिससे अन्य विकास के मुद्दों पर नेताओ का ध्यान जाएगा।

2. मैदानों और पहाड़ो का एकसमान विकास संभव हो सकेगा। क्योकि इससे नेताओं को दोनों जगहों पर सामान विकास करना अनिवार्य हो जाएगा। ऐसे में उनकी जिम्मेदारियाँ बढ़ जायेगी क्योकि उन्हें मैदानों के साथ साथ पहाड़ों में भी एक इन्फ्रास्ट्रकचर का विकास करना होगा। इन जिम्मेदारियों के बढने से उत्तराखंड में हो रही बेमतलब की फ़ालतू राजनीति बंद हो जायेगी। और विकास के असल मुद्दों पर राजनितिक चर्चा शुरू होगी।

3. हालांकि ये सत्य है कि उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है परन्तु इन पहाड़ो में रिसोर्सिज (संसाधनों- जैसे कि स्वास्थ्य सुविधाए, पैट्रोल- डीजल lpg गैस जैसे ईन्धन, राशन संचार सुविधाए इत्यादि) की कमी है और पहाड़ो में ये रिसोर्सेस मैदानों से आते है। इन रिसोर्सिस यानी संसाधनों की आपूर्ति पर नियन्त्रण मैदानों से बेहतर तरीके से किया जाता है। अतः इस अवस्था में देहरादून का राजधानी होना आवश्यक है। ताकि उत्तराखंड में संसाधनों की आपूर्ति आबाध गति से चलती रहें। और इसमे किसी प्रकार की कोताही या कमी भ्रष्टाचार से न हो सके।

4. ये सभी संसाधन मैदानों से चलकर पहाडों तक तो पहुंच जाते है पर इनका सही और न्यायोचित ढंग से वितरण आज भी एक समस्या है। क्योकि इनकी जांच के लिए अधिकारी देहरादून से ही भेजे जाते है और जब तक वो अधिकारी पहाड़ो तक पहुचते है तब तक उन संसाधनों की अधिकाँश मात्रा का या तो गबन हो चुका होता है या फिर वो बेतरतीब ढंग से वितरित हो चुके होते है। ऐसे में पहाड़ो में राजधानी की आवश्यकता पड़ती है। जिससे संसाधनों पर पूर्ण नियन्त्रण हो सके और वे सही व न्यायोचित तरीके से वितरित हो सके। और गैरसैण वह स्थान है जो कि उत्तराखंड के बीचोंबीच पड़ता है गढ़वाल और कुमाऊ दोनों की पहुँच में है अतः गैरसैण को भी राजधानी बनाया जाना आवश्यक है।

5. दोनों राजधानियों मे बने हुए प्रशासनिक कार्यालयों में 12 महीने अधिकारियों की नियुक्ति होगी। इससे उत्तराखण्ड की जनता के पास अपनी समस्याओ के निस्तारण के दो विकल्प उपस्थित होंगे। दूरस्थ इलाकों के लोगो को असमय ही देहरादून नहीं भागना पड़ेगा उनकी समस्याए गैरसैण में ही सुलझ सकेंगी। और मैदानों के लोगों को पहाड़ो में अपनी समस्याओं को लेकर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और देहरादून में ही समस्या समाधान हो जायेगा।


6. जिस प्रकार देहरादून में राजधानी का एक बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा है और आसपास के मैदानी इलाको में विकास कर रहा है। उसी प्रकार द्वितीयक राजधानी गैरसैण बनने से वहाँ का भी एक इन्फ्रास्ट्रक्चर बनेगा और पहाडों का विकास करेगा। जिससे पहाड़ों में हो रही शिक्षकों की कमी, डाक्टरों की कमी एवं स्वास्थ्य जैसी समस्याओं का निदान हो सकेगा।

7. मंत्रियों एवं अधिकारियों द्वारा दोनों तरफ बराबर ध्यान देने से घूसखोरी एवं भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारी या लोग हमेशा भयभीत रहेंगे और भ्रष्टाचार के मामलों में एक उल्लेखनीय कमी आएगी। इसके अतिरिक्त पहाडो में द्वितीयक राजधानी बनने से पहाड़ में रह रहे लोग नई नई कृषि तकनीकों से और नये रोजगार के अवसरों से परिचित होंगे। तथा पहले से ज्यादा जागरूक और शिक्षित होंगे जिससे हमारे राज्य की चहुंमुखी प्रगति होगी।

अतः मेरे मत से उत्तराखण्ड को दो राजधानी बनानी चाहिए 1. देहरादून -जो राज्य के मैदानी इलाकों का प्रतिनिधित्व करती हो,2 गैरसैण- जो राज्य के पहाड़ी क्षेत्रो का विकास करने में सहायक सिद्ध हो।
जिससे सम्पूर्ण राज्य का सामान और तीव्रगति से विकास हो। और हमारे राज्य आन्दोलनकारियों की कुर्बानियां बेकार न जाए एवं उनके स्वप्न अक्षरशः सत्य सिद्ध हो।

Gajbir Rawat

Dehradun cause it has got all the infrastructure and education facilities for the future generation. And it could be the smart city in near future.

Manoj Bhandari


3 Responses


harish chandra fulara Says

rajdhani garsen hi honi chahiy dehradun hamare vaha se delhi se vi dur ha

Vipin panwar Says

गैरसैड को स्थाई राजधानी बनाये जाने की लुम्बे समय से मांग चल रही है इस पर वर्तमान बीजेपी सरकार को विचार करना चाहिए।साथ ही आंदोलनकारियों और गढ़वाल की जनता का समान करते हुए गैरसैड को स्थाई राजधनी घोषित कर देना चाहिए।

yudhveer kaintura Says

Meru bichaar cha gairsan he rajdhani theck laglee kelai ke savi logo tai najdeek pari jaloo