1.
क्योंकि मैं फिर से उस बीते,
कल में जीना चाहता हूँ
पहाड़ो से उगते उस सुरज को
फिर से देखना चाहता हूँ
बारिश से , आँगन में इकट्ठे पानी पे,
मैं कागज की नाव चलाना चाहता हूँ
पंधेरे के उस पानी को मैं
झुक्कर दोनों हाथो से पीना चाहता हूँ
जिन खेतो में कभी माँ के लिये रोटी ले गया
उस मिट्टी को छुना चाहता हू
चुराए थे जिन पेड़ो से फल
उन बूढ़ेे पेड़ो को सीने से लगाना चाहता हूँ
छुपम छुपाई खेली थी जिस टूटे घर पे
दो टूक बात उससे करना चाहता हूँ
मैं बचपन की उस नादानी को फिर से समेटना चाहता हूँ
याद है मुझे दादी के दिए वो बिस्कुट
जिन्हें मै आगाँन में पेड़ लगेगा
येह समजकर बो देता था
अब सायद बडा हो गया होगा वो पेड़ मेरा उसे देखना चाहता हूँ
मैं इसीलिए वापस अपने गाँव जाना चाहता हूँ
2.
रहना है आमा बुबू के साथ…
मिटानी है थकान ईजा और आमा के आँचल में…
सुनना है आमा की वो राजा और रानी की कहानियाँ…
रहना है ताजी हवा और स्वच्छ वातावरण वाली वादी में…
जीना है अपने पुराने और पवित्र संस्कार में…
चलना है बुबू के हाथ पकड़कर खेत की पगडंडियों में…
नाचना है ढोल नंगाड़ो और बिनबाजा की धुन में…
मिटानी है प्यास धारा और नौला का साफ़ और मीठा ठण्डा पानी से…
मिटानी है भूख मडुवे की रोटी, घौत की दाल और भट्ट का जौला से…
मिटानी है आँखों का सुकून हरे भरे पहाड़ और खेत देख के…
मनाना है घुघुती, हरेला और घी त्यौहार…
खेलना है गिल्ली डंडा, चोर सिपाही और लुक्का छुपाई का खेल…
चाहिए काका काकी, ताऊ ताई का निःस्वार्थ प्यार…
जन्म लेना है इस पावन धरती में बार बार।
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क्यूंकि अब नहीं लड़ा जाता शहरी दंगल में,
घुटने लगा हैं दम इस कंक्रीट के जंगल में ।।
सड़क नहीं, बाटू चाहिए,
मकान नहीं, कुड़ी चाहिए।
चाहिए मुझे झंगोर, मेग्गी मुझे नहीं चाहिए।
चाहिए मुझे सुकून, शोर मुझे नहीं चाहिए।
मुझे चाहिए वो बड़ो का आशीर्वाद, ये हाई, बाई और हेल्लो नहीं चाहिए।
चाहिए मुझे शुद्ध हवा, वो मीठा पानी, घुटन और ज़ेहेरीली सांसे नहीं चाहिए।
मेरी आत्मा जहाँ बसती हो, वो खेत और वो घर और मेरा पहाड़ चाहिए।
मे उत्तराखण्डी हूँ । मेरा जन्म उत्तराखण्ड मे हुवा है। मेरा बचपन उत्तराखण्ड मे बीता है। मैंने 12 तक की पढ़ाई गाँव मे ही की है। मे पिछ्ले 32 सालो से शहर मे हूँ । पर मेरा मंन मेरे साथ नही रहा । मेरा मंन गाँव मे ही रह गया । मे अपने बच्चों को ले कर उत्तराखण्ड जरूर लौटना चाहता हूँ । क्योकि मन और शरीर के अलग -2 रहने से जो पीड़ा होती है अब मे।उसे नही झेलना चाहता हूँ ।
क्योंकि मेरा बचपन बीता है वहां।वो धारे का पानी और शुद्ध हवा की कमी, पहाड़ों से दूर होकर बहुत खलती है। प्रकृति को इतने पास से देखने का आनन्द ही कुछ और है।
मैं पहाड़ वापस जाना चाहता हूँ…..
क्योकि हम आज पढ-लिखकर दिल्ली, बम्बई, कोलकाता या फिर विदेश तो जाना चाहते है पर हममे से कोई पहाड़ जाकर काम करना नहीं चाहता।
माँ-बाबू भी कहते है की बेटा खूब मन लगा कर पढ़ाई करो और अच्छी से अच्छी नौकरी करो पर कभी कोई ये नहीं कहता की पढो और पहाड़ जाकर काम करो….
पर मैं जाना चाहता हूँ …
मेरे जाने से वाह क्या फर्क पड़ेगा या नहीं पड़ेगा उससे मुझे कोई मतलब नहीं पर मैं पहाड़ जाना चाहता हु और वही रहकर अपना पूरा जीवन बिताना चाहता हूँ।
क्योकि “”खाली होते गांव मुझे बुला रहे हैं
मेरे मित्र पलायन पलायन चिल्ला रहे है
अगर मैं करता हुं
पहाड़ के विकास की बात,
मुझे उत्तराखण्ड वापिस जाना होगा”
क्यों की मेरे पूर्वजों की आत्मा बस ती है वहाँ
मैं उत्तराखंड वापसी चाहता हूँ, सिर्फ इसलिए नहीं कि वो मेरी जन्म भूमि है बल्कि इसलिए भी क्यू की वहा पर बढ़ते पलायन ने जो विकास पर रोक लगाया है, उसको ख़त्म करने की चाह मे और अपने साक्षर जीवन को अपने राज्य के विकास कार्य मे लगाने के लिए भी, विगत वर्षो मे या अब तक जो उत्तराखंड मे या ग्रामीण छेत्रों मे जो इतना पिछड़ापन या विकासहीनता का माहोल बना है वह सिर्फ इसलिए कि गाऊँ मे कोई शिक्षित व युवा वर्ग आवाज उठाने वाला नहीं है। गाँव मे जब सुविधाएं उपलब्ध होंगी तो अधिकांश लोगों की पलायन का मुद्दा ही कम हो जायेगा। मैं अपने सामने अपने उत्तराखंड का विकास होता देखने की चाह मे उत्तराखंड वापसी चाहता हूं।
यहाँ की स्वच्छ हवा,पानी का मोल नहीं।
यहाँ की मिटटी की भीनी भीनी खुशबु।
एक एक पेड़ और पत्थरों की आवाज।
नदी नालों की कल कल आवाज।
के बगैर अब रहा नहीं जाता।
क्योंकि बाहर आये थे पैसा कमाने, पैसा कमाया लेकिन सुकून की जिंदगी गंवाई.
नैसर्गिक अमृत खानपान की जगह पैसा खर्च करके जहर सा खाया पिया.
विषम परिस्थितियों मे भी जिन घरों, छज्जौ,तिबारी,खेत और खलिहानो मे जिंदगी को स्वछंद जिया आज उन घरों की विलुप्तता की बेबसी मे फिर से अपनी संस्कृति, खान पान,रहन सहन आदि की रौनक लगाना चाहती हूँ.
साथ ही जो थोड़ा बहुत अनुभव हासिल किया है उसका उपयोग अपने स्तर पर अपने गाँव की बेहतरी के लिये करना चाहती हूँ.
Mei it sector ki job k liye noida aaya hua hu, par yaha ki life style bahut alag or ajeeb hai..na kise bhi cheej ka time hai na koi achi life hai yaha. yaha pe khane tak ka time ni hai logo me ..bahut matlabi log hai yaha pe..bina paise k koi kaam ni hota pani bhi paise se peena hai..jaha rahta hu unhone ab tak ek baar pucha ni tumne khana bhi khaya ya ni…yaha k log bahut jyada matlabi or apni life me busy hai kisi ko kise k liye time ni hai…yaha shor, ganda pani, gandi hawa, travel m bhi problem hai…rahan sahan bhi kuch thik ni laga yaha ka..chori, loot , rape , road accident yaha aam baat hai..log raat bhar bhi kaam m jate hai koi life ni hai really me… kio kitna ameer ban jaye yaha uski kio value ni hai yaha …10 m se 9 log bewakuf banane wale milte hai yaha pe..so me bhi bus kuch kaam mil jaye jisse kharcha chal jaye uttrakhand jana chahta hu … ye mera persnal exprince hai …bhag dor ki life koi life ni hai …chahe hard work kitna karna pade usme khud ka life ko bhi dekhna chahiye…
पलायन के बढ़ते रोग के आगे उत्तराखंड की स्थिति दयनीय है।
सुंदरता से भरपूर इस राज्य में कभीे किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं थी यहाँ के लोगोँ ने बढ़ी सहजता के साथ अपने जीवन का निर्वाह किया और वो लोग कृषि पै निर्भर थे जिस कृषि की आज अवहेलना की जाती है हमारे बुजर्गो ने अपनी मेहनत से उस कृषि से ही अपना जीवन यापन किया और पहाड़ो को नयी पहचान दिलायी परन्तु आज परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत है आज पलायन का एक नया रोग सामने आया है और लोग पहाड़ो और उत्तराखंड को छोड़ के शहरों की तरफ रुख कर रहे है लेकिन फिर भी वो अपनी संस्कृति अपनी भाषा को भुलाने में असमर्थ है कही न कही आज भी हर उत्तराखंडी आदमी के मन में ये ठेस जरूर है की काश में उत्तराखंड में ही होता तो बहुत अच्छा होता परन्तु यह उसके लिए शायद अब सम्भव नहीं क्योंकि वो पहाड़ो के जीवन को कष्ट रूपी समझता है वह आज ये भूल गया की ये वो धरती है जिसे उसके पूर्वजो ने खून पसीने सींचा था।
आज हर उत्तराखंड का निवासी दूर शहरों में रहकर भी कभी शादी ब्याह कभी पूजा प्रतिष्ठा कभी त्यौहार को मनाने तो कभी अपनों से मिलने की चाह जैसे उत्तराखंड जाने के बहाने ढूंढ़ता है यह उस देव भूमि की शक्ति है की हजारो किलोमीटर दूर बसे लोगों के मन में अपनी चाह समाये हुए है और उसे अपनी याद दिलाती रहती है ।
क्योंकि यहाँ की मिटटी मुझे बुला रही है । बिन मेरे रो रही है किसी कोने में सो रही है खेत खलिहान पुकार रहे है ।।। ढेली गो गोठियार मुझे बुला रहे है । खली होते पहाड़ का दर्द बुला रहे है ।।
ओ नादाँ परिंदे घर आजा घर आजा क्यों देश विदेश फिरे मारा यूँ हाल बेहाल थका हारा।।
kyunki may life me kitni bhi aage bad jau’ paisa kamau(shohrat pau) mera gaon mera ghor’ meri dev bhumi h.. may usse alag nhi ho skti.wohi meri pehchan h.. mujhe khud pr fakar h ki may garhwal me janmi. hr janam mera ynhi ho.
humare uttrakhand jaise kahi ni hai. yaha ki life style bahut achi sub log har cheej ka subka ek time hai..yaha bhag dor wali life ni hai..yaha k log bahut ache hai . bina matlab k bhi help kar dete hai ..ya k nature life bahut pyari or sundar..pura uttrakhand hara bhara , taji hawa, pani, organic khana hai…yaha dev bhoomi hai hai to har jagah positive mahol hai..humare uttrakhand me chori, loot, jaise ghatnaye na k barabar hai ..villages m to log bahut jyada ache hai .
yaha pe culture abhi bhi hai , log bado ki respect karna jante hai.
uttrakhand me shanti bhara mahol hai jo metro city me kabhi ni mil sakta.pura uttrakhand bahut acha hai ..
Me uttrakhand Jana chahta hun kyunki me zindgi ko jeena chahta hun , zindgi katna nahi chahta ….
Mujhe mere ghar or gaon ki yaad aati he isliye jaana chahta hun me uttrakhand…
kyonki mai chahta hu ki jo bhi gyan muje uttarakhand ke bahr se mila hai,, jo kuch bhi techniques maine aur deshon aur rajyon main seekhi hain —main chahta hu ki mai unhe apne gawn gawn tak pahuchaun———-kyonki mai chahta hu ki mere bacche bhi ise dharti pr janm lene ka gaurav payen
i love pahad and mai nature ko apna dost manti hu and jo city m ni h wo sub pahad m h …city m rh kr hum modern ban gye h city m sab chizo ki facilities h but jo mere dil ko and man ko chahiye wo sirf pahad m h like fresh air water trees …..kheto m hal lagana ghas katna gay bakriyo ko walk pe le janaa…..:-):-):-):-)…lub #pahad and #Uttrakhand
Meri Pawan Bhumi Uttrakhand, Meri Janam Bhumi Uttrakhand, Sudh Pani, Sudh Hawa Cho,
Sidh-Sadh Yanka Log,
Nainital Ki Tal,
Almore Ki Baal Mithai,
Ranikhet Ko Raam Dhool, Bageshwar Ko Hudki Bol,
Kaisi Main Bhul Sakun, Tihri Ko Vo Baandh, Phoolnok Ghati Vo Raang, Himalay Hamari Vo Shaan,
Badari Yan Kedar Yaan, Kasi Bul Sagnu Ham Uttrakhand,
U Kanfov Or Bedu Ka Swad, U Uttrakhand Ki Sanskirti Or Riwaz,
Hamari Yo Pahadi Bhasa,
Pyar Jo Chu Uttrakhand Dagad.
Kaisi Main Reh Sagun Uttrakhand Bina.
Jai Uttrakhand…/\…
Miss U Uttrakhand.
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
सोयी हुए सरकार को अब तो, मिल के हम जगायेंगे,
यही संकल्प है ये मेरा, एक नया उत्तराखंड बनायेंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
जो छोड़ चलें गाऊँ को अब तो, उनको अहसास दिलायेंगे,
क्योँ हारा-फिरता रहता है इधर-उधर, उनको अपनों से मिलायेंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
बूढ़े लोगों के आँखों के, आँशु अब हम पोछंगे,
उनके आँगन में अब बच्चे, हस-हस के अब खेलेंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
कितनों ने बलिदान दिया, कितनों ने पहचान दिया,
ये न जाने कौन थे वो, जिन्होंने अंदर ही अंदर अपमान पिया,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
इन पंद्रह सालों में क्या- क्या हुआ, ये तुम जानते होंगे,
हर एक दिन हजारों अपने, अपनों से दूर जाते होंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
I’m born in garhwal n brought up in Maharashtra, had been to many states n atlast visited garhwal once again. I was throughly lost in the beauty of the place, the food n many more things. Bt the reason i want to be there is i want to open a full fledge modern school in many places (under develop) . I too feel that people should come to know about my place, not simply for mountains bt also for education n many more.