सुबह की शुरुआत हुई तो अमर उजाला की खबर पर नजर पड़ी, काली गाढ़ी ‘हैडिंग’ में साफ नजर आ रहा था “पहाड़ पर 2.80 लाख घरों पर ताले”। खबर पड़ जरा भी बुरा नहीं लगा आखिर लगे भी क्यों हम भी तो अख़बार देहरादून शहर में बैठ कर ही पढ़ रहे हैं, तो फिर ये घड़ियाली आंसू क्यों बहाएं?
हर दिन फेसबुक पर नजर दौड़ाओ तो हजारों पलायन से सम्बंधित सरकारी, गैर-सरकारी व आम लोगों द्वारा जताया गया दुःख पढ़ने को मिल जाता है। शायद मैं भी वही कर रहा हूँ मगर मैं उम्मीद नहीं करता किसी से वापस गाँव में बसने की। हो सकता है पलायन पर राजनीती करने वाले और इससे जेब भरने वाले लोगों को मेरी बात अच्छी न लगे पर हर इंसान का हक़ है अच्छी शिक्षा, बुनियादी सुविधाएँ, सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य सेवाएं आदि।
ये तो साफ है की बिना नौकरी व बुनियादी सुविधाओं के इस मंगल तक पहुँच चुकी दुनिया में किसी दूरदराज के गाँव में अंजान बन कर रहे यह मुमकिन नहीं। एक अच्छा जीवन देखने का ख्वाब हर कोई देखता है और हम किसी से उम्मीद नहीं लगा सकते की वो हमारी सोच के हिसाब से चले। हाँ अगर घर पर ताले लगे हैं तो ये बात साफ है की उसे अपने घर की फ़िक्र है और घर छोड़ते वक्त शायद उनके मन में यही विचार आया होगा की “सब कुछ ठीक हो जाएगा और मैं खूब पैसे कमा कर बुढ़ापे का जीवन इस घर में बिताऊंगा”।
एक पंछी जो कभी अपने घोंसले से बाहर ना निकला हो और उसकी पहली उड़ान से उसे एहसास हो की आगे उम्मीदों का संसार है तो बहुत की कम सम्भावना है की वो उसी घोंसले में वापस रहना चाहे। हाँ एक शर्त पर वो रह सकता है- की वो दुनिया देख चूका है और अपने अनुभव नए पंछियों के साथ बाँट उन्हें भी आसमान छूने की सलाह देगा।
आज हम पूरी दुनियां में हैं, बेशक हम गाँव में पढ़ कर बड़े हुए हैं पर ये बात भी सत्य है की गाँव से निकल कर ही हम प्रदेश व देश का नाम रोशन कर पाए। आज कई गैर सरकारी व सरकारी संगठन उत्तराखंड के गावों में आम लोगों को रोजगार के साथ-साथ अन्य मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवा रही हैं और ये भी सत्य है की प्रतिभा को बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता, इसलिए जरुरत है दूसरों के सहारे की उम्मीद करने के बजाए खुद ही से शुरुआत करने की।
शहरों में रहने की जगह नहीं और पहाड़ी गावों में रहने वालों का कोई अता-पता नहीं। जरूरी नहीं अभी के लोगों की गॉव में रहने को लेकर जो सोच है वो आने वाली पीढ़ी की भी हो। सबकुछ तो है यहाँ और वक़्त के साथ शहरों में बढ़ते दबाव को कम करने के लिए सरकार की मजबूरी हो जाएगी गॉवों को विकसित करने की और ये कहावत भी बड़ी मशहूर है की ‘गिरगिट को देख कर ही गिरगिट रंग बदलता है’ उम्मीद है दिखावे की ये दुनिया उस पल भी यूँ ही बरक़रार रहेगी और गावों में रहने वाले सबसे उच्च माने जाएंगे।
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