पता है पहाड़ों पर सुबह काफी ठंड होती है पर क्या करें स्कूल दूर है और पैदल जाना है, पर गाँव के दोस्त और कभी न खत्म होने वाली लाखों बातें हो तो लम्बे रास्ते और चढाई का पता ही नहीं चलता। देर से पहुँचने पर मास्टरजी हाज़री नहीं लगाते। मेरे पास घड़ी नहीं है पर स्कूल की प्राथना से पहले वाली घंटी दूर से ही सुनाई दे जाती है और फिर क्या हम भी दौड़ लगाते हैं की कौन पहले पहुंचेगा। कुछ मास्टर लोग गाँव में नहीं रहते वो निचे जहाँ बड़ा बाजार है वहीं से गाड़ी में रोज सुबह स्कूल आते हैं, उनके बच्चे भी वहीं पड़ते हैं शायद वो स्कूल हमारे स्कूल से अच्छा होगा।
मैंने माँ से कहा था मुझे नया बस्ता चाहिए पर अभी तक नहीं मिला पर कोई बात नहीं नए बस्ते से कंधे का बोझ थोड़ी कम हों जाएगा। स्कूल में ज़्यादा बच्चे नहीं है क्योंकि ज़्यादातर लोग गाँव छोड़ कर चले गए हैं और बाहर रहते हैं। माँ कहती है अपने दिल्ली वाले रिश्तेदारों की तरह खूब पैसे वाला बनना पर उनका गाँव का घर तो टुटा हुआ है तो फिर वो अमीर कैसे? शायद उनका वहाँ बहुत ही अच्छा महल सा घर होगा और खुद के पहाड़ और बड़े बड़े खेत होंगे तभी उन्हें गाँव के घर की ज़रूरत नहीं। यहाँ का पानी भी साफ है, फल-सब्जियां भी अपने खेत की हैं, ताज़ी हवा है पर फिर भी पता नहीं हमारे यहाँ रहना या आना पसंद क्यों नहीं करते शायद मैं पड़ लिख कर इतना समझदार हों जाऊं की लोगों को कुछ समझा पाऊं की यहाँ रहने में कोई खराबी नहीं है और अगर तुम यहाँ नहीं रहोगे तो कोई और बाहर का यहाँ आके रहने लगेगा और हो सकता है जो आज तुम्हारा है वो कल किसी और का हो जाए।